दीपक कश्यप भारत सरकार के उच्चाधिकारी होने के साथ साथ एक समर्पित योगसाधक, आयुर्वेद के अच्छे जानकार, अंग्रेजी के माने हुए लेखक एवं उर्दू के प्रतिभावान शायर भी हैं। योग साधना पर इनकी लिखी हुई आत्मकथात्मक किताब “योग: अनाटौमी ऐंड द जर्नी विदिन“ योग मीमांसा एवं अन्तर्ज्ञान के अदभुत समन्वय के कारण देशविदेश में प्रतिष्ठित हो कर योगजिज्ञासुओं को बहुत लाभ पहुंचा रही है, और रक्षा मंत्रालय के अंतर्गत जल, थल एवं वायु सेना के अधिकारियों के अध्ययन के लिए स्वीकृत है। जो अध्यात्मदर्शन इनकी अंग्रेजी की किताब का प्राण है, वही इनकी शायरी को लीक से हट कर कशिश और गहराई के एक नए मुकाम पर ले जाता है। इस संकलन में शामिल उनकी नज़्में और ग़ज़लें ऐसी आमफ़हम ज़बान में कही हुई हैं कि उर्दू के क़द्रदानों के साथसाथ हिन्दी के पाठक भी इनका पूरापूरा लुत्फ़ उठा सकते हैं। जैसे उमर खय्याम की “रुबाइयात” अरबीफारसी रवानी से रिसती हुई उर्दू लज़्ज़त और हिन्दू संस्कृति के उपनिषदों से उपजी हुई रूहानियत को मिलाती हुई एक अद्वितीय रचना है, उसी शैली में दीपक कश्यप की शायरी उर्दू की रूमानियत, अंग्रेजी की बौद्धिकता और ‘हिन्दी’ के अध्यात्म का एक अनूठा संगम है। योगाभ्यासी की मंत्र–साधना की तरह शायर की ग़ज़लगोई भी रूह की गहराइयों से फूटती है, इसलिए रूह तक पहुँचती है। ग़ज़ल का एक मतलब ‘प्रेयसी से संवाद‘ भी होता है, और कश्यप की ग़ज़लों में यह रंग बेशक मौजूद है। मगर यहाँ मोहब्बत के तजुर्बे में किरदार जिस्म के तक़ाज़ों से रूह की ऊंचाइयों का सफर कब और कैसे तय कर लेता है, यह न उसे पता चलता है न उससे जुड़ने वालों को। इन नज़्मों और ग़ज़लों के ख़याल और उनकी लय में डूब कर पाठक बाहर से जितना आनंदित महसूस करेंगे, अंदर से उतना ही आंदोलित भी।
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